बोलतीरामायण

सम्पूर्ण रामायण गायन (अक्षरश:) की कहानी

(लेखक : रवि चौधरी)

सम्पूर्ण रामायण गायन का ये प्रसाद प्रभु श्रीराम का विशेष आशीर्वाद है.

सम्पूर्ण रामायण अखंड गायन की परिकल्पना की थी श्री बेणुगोपाल जी बांगड़ ने.(Chairman: Shree Cement). बातों बातों में उन्होंने अजय को इसकी जिम्मेदारी दे दी. निर्देश था कि संगीतमय रामायण की अवधि रखनी है 24 घंटे के अंदर. सुर ताल ऐसे रखने हैं कि श्रोता, उच्चारण सहजता से और सटीक रूप में समझ सके. साथ साथ लय में पाठ कर सके. संगीत की भाषा से समझे तो वाध्ययंत्रों की आवाज को धीमा रखना है और धुन एकदम सरल ताकि लोग आसानी से समझ सके और साथ में पाठ कर सके.

सबसे बड़ी मुश्किल थी कि इतने विशाल रामायण के अक्षरशः गायन की अवधि रखनी थी 24 घंटे के अंदर. अजय ने कई संगीतकारो से बात की और सबका ये मत था की 24 घंटे की अवधि के अंदर पूरी रामायण गाई ही नहीं जा सकती. कई तकनीकी कारण थे उस नकरात्मक विचार के. संक्षेप में इतना समझना होगा कि आज तक किसी भी कलाकार या समूह ने सम्पूर्ण रामायण का अक्षरश: गायन नहीं किया तो कोई विशेष कारण ही रहा होगा.

                 लेकिन होई है वोही जो राम रच राखा

प्रभु को अपना विशेष कार्य, विशेष रूप से ही कराना था. उन विशेषज्ञ संगीतकारों की नकरात्मक सलाह के बावजूद अजय ने रामायण की धुनों पर काम करना शुरू किया. संगीत में विधिवत शिक्षित न होने के बावजूद अपनी नैसर्गिक प्रतिभा पर अजय को भरोसा था और संगीत के आधुनिक उपकरणों को चलाने का ज्ञान भी. उसके इस आत्मविश्वास के पीछे सबसे बड़ा कारण था उसके पिता श्री अशोक कुमार जी मूंधड़ा के रामायण पाठ का अनुभव, जिन्हें रामायण की एक एक चौपाई कंठस्थ है. अजय को ऐसा लगा कि शायद उसके पिता के रामायण पाठ के अभ्यास के फलस्वरूप ही ईश्वर ने उसे इस काम के लिये चुना है.

बिना किसी और संगीतकार या तकनीशियन के सहयोग से (क्योंकि कोई इस प्रोजेक्ट पर काम करने को राजी ही नहीं था) इस जटिल विषय पर 2 महीनों  के श्रम के पश्चात श्री बेनुगोपाल बांगड़ जी को अजय ने सुंदरकाण्ड का गायन रिकॉर्ड कर के सुनाया. ये था संगीतमय रामायण का पहला सैंपल. 60 मिनट में अक्षरश: सम्पूर्ण सुन्दरकाण्ड. वो ज़माना कैसेट का हुआ करता था. एक कैसेट में अक्षरशः सुंदरकाण्ड ! अद्भुत बात थी ये ! क्योंकि अक्षरश: सुन्दरकाण्ड की जितनी भी रिकॉर्डिंग उपलब्ध थी उस ज़माने में  वो 2-3 घंटे में है. पूरा प्रयास एक व्यक्ति का. सारे वाद्ययंत्र अजय ने खुद बजाए. धुनें खुद बनाई, गाई और रिकॉर्डिंग भी अपने ही स्टूडियो में की. बिना किसी की सहायता के. जटिल कार्य को सरलता से प्रस्तुत करना सबसे मुश्किल कार्य होता है लेकिन  “राम करन चाहे सो होई, करे अन्यथा अस नहीं कोई

बांगड़ जी को सैंपल पसंद आ गया.

परिश्रम सफल. आगे बढने का निर्देश मिल गया.

एक एक भाग बनता गया, बेणुगोपाल जी उसे सुनते गए, पास करते गए.   10 महीनों में आधी रामायण तैयार हो गई. काम पूर्णता की ओर अग्रसर था. एक दिन अचानक बेणुगोपाल जी ने अजय को बुलाया और कहा कि रामायण की धुनें उन्हें उतनी अच्छी नहीं लग रही जैसी परिकल्पना उन्होंने की थी. साथ में पाठ करने में धुनों के साथ सरलता से सामंजस्य नहीं बैठता.

अजय का दिमाग घूम गया.एक वर्ष की मेहनत बेकार. सारे सैंपल सुनाए तो थे आपको. अजय ने उनकी बात समझ ली, सिर्फ इतना कहा ठीक है. मैं फिर प्रयास करूँगा.लेकिन मन में अजय ने सोच लिया था नहीं करना रामायण का गायन. बाकि संगीतकारों की नकरात्मक सोच कही तो बैठी हुई थी मन में. संशय जो था उसने अपना रूप दिखा दिया. अजय ने रामायण प्रोजेक्ट को ड्राप करने का मन बना लिया. लेकिन……. होई है सोई   जो राम रच राखा

 

अजय के परिवार वालों ने कहा, एक और प्रयास कर के तो देखो. भगवत कृपा से फिर मन बनाया. अजय ने एक महीने और कोशिश की. और इस बार जो सैंपल बांगड़ जी को रिकॉर्ड कर के सुनाया, बाबू गदगद हो गए ! एकदम उनकी परिकल्पना के अनुरूप !

और उसके बाद फिर से शुरु हुई रिकॉर्डिंग. रामायण की पहली चौपाई से. एक   वर्ष का समय और लगा और साकार हुआ अक्षरश: सम्पूर्ण श्रीरामचरितमानस के संगीतमय अखंड पाठ का श्री बेनुगोपाल जी बांगड़ का स्वप्न. जो रामायण तैयार हुई, वो अनुमोदित हुई तकनीकी रूप से भारतवर्ष के सबसे बड़े तकनीकी विशेषज्ञों से. अजय ने स्वयं श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी को ऋषिकेश में लैपटॉप पर इस रामायण के कुछ अंश सुनाए और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया. यानी भक्त, तकनीशियन और संत, सबों द्वारा अनुमोदित.

सबसे महत्वपूर्ण बात : इस सन्दर्भ में जो बात समझने की है वो ये कि रामायण गायन की परिकल्पना करने वाले सज्जन है एक उद्धोगपति जिनका संगीत से कोई विशेष जुड़ाव नहीं. उनकी तो बस एक सीधी सरल कल्पना है कि रामायण का संगीतमय पाठ उपलब्ध हो…. ताकि रामायण अखंड पाठ में और आनंद आए.

जिस कलाकार ने इस कार्य का बीड़ा उठाया, वो कोई संगीतज्ञ नहीं, प्रशिक्षित कलाकार नहीं, सिर्फ संगीत की नैसर्गिक प्रतिभा और अपने पारिवारिक मूल्यों के भरोसे, अकेले बिना किसी अन्य संगीतकार की सहायता से, गायन, धुन बनाना, संगीत संयोजन, रिकॉर्डिंग इत्यादि सारे कार्य अकेले सम्पादित करना,

उस जमाने में जब न तो यू tube था और न ही रिकॉर्डिंग तकनीक के ज्यादा जानकार . और वो भी इस कुशलता के साथ कि श्रोता मन्त्रमुग्ध हो कर सुनता जाए. गायन तो किया है सिर्फ एक कलाकार ने लेकिन इतने प्रयोग किये है कि कई जगह युगल और कई जगह समूह गायन हो रहा है ऐसा प्रतीत होता है. रोचकता बनी रहती है. रामायण के प्रसंगों के भावों के अनुसार गायकी में भाव आए हैं लेकिन इस सहजता के साथ कि पाठकर्ता अपनी लय से न भटके. कुल मिलाकर रामायण अखंड पाठ में सहयोग का यह प्रयास अद्भुत है और रामायण के निम्नलिखित अंश का साक्षात् उदहारण:

बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ

                    जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ

 यह शंकरजी का दर्शन (ज्ञान) है कि संसार में न कोई मूढ़ है, न ज्ञानी. परमात्मा जिसको जैसा चाहे उस क्षण वैसा बना देता है. अत: अपने ज्ञान, धन, शक्ति पर अभिमान नहीं करना चाहिये और न ही किसी को कमजोर समझना चाहिये. हमें अपनी क्षमता पर विश्वास होना चाहिये. ऊपर वाला जिंदगी की डोर अपने हाथ में रखता है, इसलिए सफल हों तो उसे धन्यवाद दें और असफल हों तो उससे और शक्ति मांगें.

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