बोलतीरामायण

बोलती रामायण का प्रचार क्यों करे ? वितरित क्यों करे ?

यह समझना अतिआवश्यक है कि बोलती रामायण के प्रचार प्रसार के पीछे एक ही उद्देश्य है… रामायण का प्रचार प्रसार. इसके प्रचार से उपलब्ध राशि को रामायण के प्रचार में ही खर्च किया जाएगा.किसी भी तरह का व्यवसायिक अभिप्राय इसके साथ नहीं जुड़ा है. आपसे करबद्ध प्रार्थना है कि हर तरह के नकारात्मक विचारों को मन से निकाल कर सिर्फ गीता और रामायण के इन संदेशों पर ध्यान दे.

एक संदेश है “भगवत गीता के 18वे अध्याय का 69वां श्लोक” जिसका अर्थ है “भगवान को वो मनुष्य सबसे प्रिय है जो भगवान के संदेश यानी गीता का प्रचार करता है.” भगवान अपना प्रचार चाहते क्यों है ? भगवान चाहते है कि अच्छी बातें समझ कर सब मनुष्य भगवान बन जाये, भलाई के कार्य में लगे ताकि भगवान की रची ये सृष्टि अतिसुन्दर हो जाए.

रामायण और गीता मात्र धार्मिक ग्रन्थ नहीं है, दोनों में जीवन शैली का सन्देश एक सा ही है. गीता में भी श्रीकृष्ण कहते है जो प्राणी सुख और दुःख में समान चित्त वाला है वो मुझे प्रिय है और रामायण में प्रभु श्रीराम कहते है

      निंदा अस्तुति उभय सम ममता मम पद कंज।
                       ते सज्जन मम प्रानप्रिय गुन मंदिर सुख पुंज॥

भावार्थ:-जिनके लिये निंदा और स्तुति (बड़ाई) दोनों समान हैं और मेरे चरणकमलों में जिनकी ममता है, वे गुणों के धाम और सुख की राशि संतजन मुझे प्राणों के समान प्रिय हैं. …और वास्तव में जो मनुष्य न सुख में ज्यादा हर्षित होता है न दुःख में ज्यादा द्रवित….. वो ही जीवन में सुखी रहता है.

अत: रामायण का ज्ञान लोग जीवन में उतारे, उसके लिये रामायण का प्रचार प्रसार आवश्यक है और उस प्रचार का एक सरल माध्यम है बोलती रामायण . आपसे अनुरोध है कि इस हरिकृपा का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाए एवं औरों को भी सूचित एवं यथाशक्ति वितरित करें.  

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