बोलतीरामायण

प्रेरणा कैसे मिली बोलती रामायण की ?

आज के भारत, खास कर महानगरों का अनुभव यह है कि लोग रामायण को दिव्य ग्रन्थ तो समझते हैं लेकिन उसका उपयोग नहीं करते. बहुत से लोग तो तुलसी दास जी की रामायण की भाषा संस्कृत ही समझते हैं. तुलसी रामायण की सहज भाषा भी लोगो को आसानी से समझ नहीं आती. रामायण की चौपाइयों को अगर आज की हिंदी भाषा यानि खड़ीबोली में रूपांतरित कर दिया जाय तो उन पर श्रद्धा कम हो जाती है क्योंकि पिछले 500 वर्षों से रामायण की चौपाईया भारतवर्ष के कण कण में गूँज रही हैं. अदृश्य रूप से हमारे वातावरण में घुल मिल गयी हैं. और मन्त्र का महत्व तो उसके दोहराव से ही बढ़ता है. यानि चौपाई की भाषा समझ नहीं आती, और भाषा परिवर्तित करने से श्रद्धा, विश्वास में कमी आती हैं. तो चौपाई रुपी मंत्र परिणाम कैसे देंगे ?

मंत्र महामनि बिषय ब्याल के         मेटत कठिन कुअंक भाल के

रामायण की चौपाईयाँ वो महामंत्र हैं जो ललाट पर विधि का लिखा दुर्भाग्य भी मिटा सकती हैं.

 आज का युग विश्वास का युग है, ब्रांड का युग है. तुलसी रामायण पर लोगो का विश्वास तो है, बहुत बड़ा ब्रांड है, मगर उपयोग लुप्त होता जा रहा है क्योंकि लोग रामायण का असली महत्व समझते नहीं. हम सोचते है कि हम भगवान की पूजा करेंगे और भगवान हमारे कार्य कर देंगे. हमें ये समझना होगा कि कार्य तो हमें स्वयं ही करना होगा. ईश्वर का नाम हमारे मनोबल को बढाने के लिये है. हमें सही राह दिखाने के लिये है. रामायण में जीवन कैसे जिये उसका मार्गदर्शन है. रामायण के इस महत्व को समझने का प्रयास करना है. धर्म के कर्म के साथ सम्बन्ध की व्याख्या कर धर्म सम्बन्धी फैली भ्रान्तियों को दूर करने का भी प्रयास करना है.

जाने बिनु न होइ परतीती , बिनु परतीती होइ नही प्रीति

राम को जाने बिना उन पर विश्वास नहीं जमता, विश्वास के बिना उनसे प्रीति नहीं होती और प्रीति बिना उनकी भक्ति नहीं होती. और राम को समझने के लिये रामायण को समझना बहुत ज़रुरी है, तभी राम की महत्ता समझ आएगी. और रामायण पठन/श्रवण की प्रथा महानगरों में तो आजकल लुप्त सी होती जा रही है. और बिना राम को समझे जीवन में सुख शांति आ नहीं सकती.

इस समस्या का निदान एक ही समझ में आया कि चलो सुनना तो शुरू करे. रामायण की चौपाई रूपी मंत्र जब गूंजेगे तो पवित्रता का संचार तो शुरू होगा. फिर तुलसी रामायण का हिंदी अनुवाद तो उपलब्ध है ही. लोग रूचि लेना शुरू करेंगे तो समझ में आना भी शुरू हो जाएगा क्योंकि रामायण है तो हिंदी भाषा में ही. बस समय के फेर से हिंदी की ये शैली अप्रचलित हो चली है.थोडा ध्यान देकर एक बार फार्मूला समझ लिया तो फिर पुरानी हिंदी भी समझ में आनी शुरू हो जाएगी और फिर तो ऐसा रस आएगा जो वर्णन से परे है.

भाव कुभाव अनख आलसहु, नाम जपत मंगल दिसि दसहु

लेकिन संगीतमय अक्षरश: रामायण के निर्माण के पश्चात भी, घर घर में इसका उपयोग कैसे हो, जन जन तक रामायण कैसे पहुचे यह महायज्ञ अभी शेष है. संगीतमय अक्षरश: रामायण को सीडी या मेमोरी कार्ड में उपलब्ध कराने से भी बात नहीं बनती क्योंकि उनको चलाने के लिये भी किसी डिवाइस की आवश्यकता पड़ती है. युवा पीढ़ी के पास समय/इच्छा नहीं कि वो डिवाइस खोजे/चलाये और बुजुर्गो को डिवाइस चलाने की विधि ठीक से नहीं पता. मोबाइल में ट्रान्सफर करे दे तो भी कोई कॉल आये तो विघ्न शुरू. एक मनोवैज्ञानिक पहलु और है कि जब तक कोई चीज़ हमें प्राप्त न हो तभी तक हम उसके पीछे भागते है, मिल गयी तो फिर उस वस्तु की कद्र नहीं. सीडी इत्यादि में उपलब्ध कराने से रामायण तो आप तक पहुँच जाती लेकिन उसका पाठ/श्रवन करने की लालसा जागृत नहीं होती. लालसा जागृत हो तो भी सीडी प्लेयर आदि की उपलब्धता, सुलभता, सरलता इत्यादि कई कारण हैं जो रामायण पाठ के मार्ग में बाधा खड़ी करते हैं. रामायण में ही लिखा है

       “अति हरि कृपा जाहि पर होइ…..   पाँव देहि इहि  मारग सोई”

लेकिन हमारा तो उद्देश्य है “रामायण-पारायण”….रामायण का पाठ तो हो.

लोग रामायण का पाठ तो करे, जब पाठ करेंगे तो समझेंगे, समझेंगे तो जीवन को राम के चरित में ढालेंगे, ढालेंगे तो जीवन सरल होगा, सफल होगा.

रामायण के अलावा कलियुग में सुख, शांति, मोक्ष पाने का और कोई साधन भी तो नहीं है… “नहि कलि कर्म न भगति बिबेकू, राम नाम अवलम्बन एकू” 

इन सब चीजों को समझते हुए एक ऐसा साधन उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है जिसमे रामायण श्रवण/पठन अति सरल हो और भगवत कृपा से आज के युग में ये साधन आपके पास उपलब्ध है बोलती रामायण के रूप में.

ईश्वर के इस वरदान का लाभ उठाइये..

तुलसी रामायण श्रवण भक्ति मार्ग की ओर जीवन को लेकर ही जाएगा.   ईश्वर के प्रति भक्ति ही जीवन का मर्म है, निचोड़ है.

भगति हीन नर सोहइ कैसा…. बिनु जल बारिद देखिअ जैसा       जैसे जल के बिना बादल किसी काम का नहीं उसी प्रकार धन, बल, गुण, यश, परिवार, चतुरता, धर्म और जाति इन सबके होने पर भी भक्ति से रहित मनुष्य किसी काम का नहीं, किसी के काम का नहीं.

बोलती रामायण का प्रयोग कैसे करे ? क्यों करे ?

रामायण सुनना सबसे सरल है. आप रोजमर्रा के अन्य कार्य करते हुए भी इसे सुन सकते है. घर में रामायण बजेगी तो बच्चों में संस्कार जागृत होंगे. नयी पीढ़ी में रामायण के प्रति श्रद्धा एवं जिज्ञासा बढ़ेगी. इस तरह नयी पीढ़ी को हम रामायण का उपहार हस्तांतरित कर सकेंगे.

बोलती रामायण के रूप में विज्ञान का एक ऐसा चमत्कार उपलब्ध है जो संगीतमय रामायण पारायण के श्रवण को एकदम सरल माध्यम से हमारे सामने प्रस्तुत करता है. बस एक बटन दबाया और रामायण की चौपाइयों के मधुर गायन का प्रवाह शुरू. आप बोलती रामायण को अपने साथ कही भी ले जा सकते है. बिजली ना भी हो तो 5 घंटे तो ये आराम से बजता है. गाड़ी में, अपने घर की छत पर, एकांत में, योगासन करते समय, वाक करते समय, मन्दिर में, कार्यालय में, कही पर भी, जहाँ आप चाहे, इसके द्वारा संगीतमय रामायण का आनंद ले सकते है. रामायण के अखंड पाठ में तो इसका उपयोग ईश्वर का प्रसाद है. 21 घन्टों में रामायण का अक्षरशः गायन… अखंड पाठ !

बुजुर्ग जिनकी आँखों की रोशनी इतनी तेज नहीं, किन्तु रामायण का मर्म समझते है, अर्थ समझते है उनके लिये इसका महत्व और उपयोग बखान नहीं किया जा सकता. कार्यालय, दुकान आदि में धीमी आवाज में रामायण की चौपाई का प्रवाह, वातावरण को पवित्र एवं मंगलमय बनाता है. सकारात्मक भावनाएं (positive feelings) उत्पन्न करता है.

त्रिबिध दोष दुःख दारिद दावन….    कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन

रामायण दोषों, दुःखों और दरिद्रता को मिटाने वाला है. कलियुग की कुचालों और सब पापों का नाश करने वाला है. इच्छाशक्ति, रूचि की कमी, समयाभाव

के कारण एक स्थान पर बैठ कर तो रामायण पाठ करना हमारे लिये मुश्किल होता जा रहा है किन्तु चलते फिरते रामायण का पाठ होता रहे और कानों में रामायण की चौपाईयां पड़ती रहे तो इससे ज्यादा सौभाग्य की बात और क्या होगी ? दुकान/कार्यालय में अगर रोज 8 घंटे भी रामायण बजी तो 3 दिन में सम्पूर्ण रामायण का अक्षरश: पाठ सम्पूर्ण और इस तरह एक वर्ष में 100 बार सम्पूर्ण रामायण का पाठ ! घर में तो हर समय रामायण का पाठ रामायण प्लेयर के माध्यम से किया जा सकता है.

भाव कुभाव अनख आलसहु, नाम जपत मंगल दिसि दसहु

क्या आपको याद है पिछली बार कब आपके घर या कार्यालय में रामायण का अखंड पाठ हुआ था ?

क्या ये याद है कि रामायण के अलावा कलियुग में सुख शांति और मोक्ष पाने का और कोई साधन नहीं है !

       नहि कलि कर्म न भगति बिबेकू, राम नाम अवलम्बन एकू”

 

इन सब बातों को पढ़ कर तो मन में यही प्रश्न उठना चाहिये कि जब रामनाम की इतनी महिमा है……… और ईश्वर कृपा से जब रामायण पाठ इतना सुविधाजनक हो गया है तो हम रामायण पाठ क्यों नहीं करे ?

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